बुर सेक्स कहानी में मैंने 19 साल की एक कमसिन छोटी लड़की की कुंवारी चूत की सील तोड़ी. वह गरीब परिवार की लड़की मेरे घर के पास लकड़ियां बीन रही थी कि बारिश आ गई.
कैसे हो दोस्तो,
मैं अभि फिर से आपके सामने अपनी एक और कहानी के साथ हाजिर हूं.
अगर आपने मेरी पिछली कहानी
द हाफ वाइफ भाभी आधी घरवाली
पढ़ी होगी तो आपको मेरे परिचय की कोई जरूरत नहीं।
नए पाठकों के लिए बता दूं कि मैं बिहार के एक छोटे से गांव का रहने वाला हूं, एकहरा शरीर है और कोई लंड मापने की जरूरत नहीं लगी क्योंकि मैं मेरे लंड से खुश हूं. साथ ही वे महिलायें भी खुश हैं जिन्होंने इसका स्वाद लिया है।
पहली कहानी में आपने मेरी भाभी और मेरे बीच के बने प्यारे रिश्ते को जाना था.
आज कुछ और … यानि यह बुर सेक्स कहानी:
तो दोस्तो, बात है वर्ष 2017 की!
मैं ग्रेजुएशन करने के बाद गांव में ही बैंक आदि जॉब की तैयारी करता था.
हमारे घर के आसपास बहुत से खेत और जंगल हैं तो इसमें दिन भर गरीब घरों के बच्चे लड़कियां औरतें लकड़ी चुनने आती हैं।
यह कहानी इन्ही में से एक लड़की आयशा की है.
नाम से तो आप समझ ही गए होंगे कि वह एक पर्दानशीं लड़की है।
आयशा के बारे सच बताऊं तो ऐसा कुछ खास नहीं था उसके चेहरे में!
पर 19 साल से ज्यादा की उम्र में भी वह छोटी बच्ची की तरह दिखती थी.
उसकी गांड बहुत प्यारी थी एकदम गोल-गोल!
चूची भी ना अधिक बड़ी ना अधिक छोटी!
वह रोज अपनी बकरियों को चराने के लिए हमारे घर के पीछे आती थी.
उसके साथ 3 और छोटे बच्चे भी होते थे जो लकड़ी बीनते थे।
मैं तो वैसे ही चूत के चक्कर में भटकने वाला पिशाच हूं तो जिस दिन से आयशा पर नजर पड़ी मैं उसके चक्कर में लग गया.
हमेशा उसके भाई बहनों को टॉफी खिलाता बिस्कुट खिलाता.
आयशा ये सब देख कर मुस्कुराती रहती और कहती- भाईजान, लगता है आपको बच्चे बहुत प्यारे लगते हैं.
मैं बस उसकी गांड को घूरता रहता था.
इसी तरह टाइम कट रहा था.
बस उसको याद करके मूठ मारना ही हुआ था अभी तक!
एक दिन की बात है, मम्मी पापा नानी के घर गए थे, मैं घर पर अकेला था और बरसात का मौसम था.
आसमान में बादल थे.
मैं बारिश में नहाने का इंतजार कर रहा था कि कब बारिश आए और मैं नहाऊँ।
तभी मुझे आयशा अपनी बकरियों को हांकती हुई आती दिखी.
आज वह अकेली थी.
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मैं घर के पिछले दरवाजे से निकल कर थोड़ा जंगल की तरफ आकर खड़ा हो गया.
उसने मुझे नहीं देखा था.
आयशा जंगल में बकरियों को झाड़ियों से बांध कर लकड़ी चुनने लगी.
उसको अकेली देख कर मेरा लंड बेकाबू होने लगा था.
मैंने अपना लंड निकाल कर हिलाना शुरू किया.
वह ठीक मेरे सामने झुक झुक कर लकड़ी चुन रही थी.
मैं आंख बंद कर के उसकी गांड में लंड चोदने की कल्पना करते हुए तेजी से मुठ मारने लगा.
तभी बूंदाबांदी होने लगी आसमान से!
मैंने जल्दी से लंड पैंट के अंदर किया.
पर अब आयशा वहां नहीं थी.
खैर मैं घर की ओर आने लगा.
तभी तेज बारिश होने लगी और मुझे आयशा बकरियों को हांकते हुए दौड़ कर भागती हुई दिखी.
वह बारिश में भीग रही थी, उसके कपड़े इसके बदन से चिपक रहे थे.
तभी अचानक से उसका पांव फिसला और वह धड़ाम से जमीन पर गिरी.
मैंने मौके का फायदा उठाने का सोचा और उसको उठाने के लिए उसके पास जाने लगा.
मुझे देख कर वह शरमाने लगी और उठने की कोशिश करने लगी.
इस कोशिश में वह फिर से फिसली और दुबारा से गिर पड़ी.
तब तक मैं उसके पास आ कर खड़ा हो चुका था।
मैं कुछ नहीं बोला और उसकी कमर में हाथ डाल कर उसे उठाने लगा.
मैंने उसका एक हाथ अपने कंधे पर रखा और उसे सीधी खड़ी किया.
उसका गीला बदन मेरे शरीर से चिपका हुआ था.
आयशा की चूची मेरे सीने को छू रही थी.
इतना सब करने पर मेरे लंड ने भी अपना काम करना चालू कर दिया था और वह मेरी निक्कर को फाड़ कर बाहर आने को मचलने लगा।
मैंने पूछा- क्या हुआ? कैसे गिर गई, चोट लगी है क्या?
आयशा– बारिश में पांव फिसल गया इसलिए गिर गई. चोट तो ज्यादा नहीं आई है. बस हाथ की कोहनी में थोड़ी लगी है.
फिर वह बोली- अब आप छोड़ दीजिए, मैं ठीक हूं!
मैं– तुम तो कीचड़ से नहा ली हो, ऐसे ही घर जाओगी क्या?
आयशा– अब और कोई उपाय भी तो नहीं है.
मैं– उपाय क्यों नहीं है, तुम अंदर आ जाओ घर के! मैं बाल्टी मग देता हूं, शरीर साफ कर लो!
आयशा– नहीं … कोई देख लेगा तो गलत समझेगा.
मैं– कोई है ही नहीं … तो देखेगा कौन? चलो साथ!
वह बिना कुछ बोले चुपचाप मेरे पीछे आने लगी.
मैंने नल चालू कर बाल्टी मग दे दिया.
वह हाथ पांव के कीचड़ धोने लगी.
मैं उसके बदन से चिपके हुए कपड़ों से उसके बदन का माप लेने लगा.
कुछ देर में वह हाथ मुंह पैर धो चुकी थी.
मैंने उसे तौलिया दिया और बोला- बाल सुखा लो, सर्दी लग जायेगी.
वह मुस्कुरा दी पर कुछ बोली नहीं और चुपचाप बाल पौंछने लगी।
आयशा– अब मैं जाऊं?
मैं हंसते हुए बोला- भीगते हुए जाओगी, फिर गिरोगी! चाय पियोगी?
आयशा– घर में कोई है नहीं क्या?
मैं– नही, क्यों?
आयशा– कुछ नही, बस सोची इतना बड़ा घर अंदर से कैसा होता है कभी देखा नहीं।
मैं– अरे, चलो मैं दिखाता हूं और चाय भी पी लेंगे दोनों!
इतना बोल कर मैं आगे चल दिया सीढ़ियों की तरफ … वह मेरे पीछे हो ली.
मैंने उसे घर घुमाया, दिखाया.
वह बहुत खुश हुई.
मैं– चाय बना लेती हो?
आयशा– हां!
मैं– बनाओ ना फिर!
इतना बोल कर मैंने उसका हाथ पकड़ा और किचन में ले आया, चाय बनाने की सारी चीजें बता दी.
वह चाय बनाने लगी.
वह अब तक गीले कपड़ों में ही थी.
चिपके हुए कपड़ों के कारण उसके गांड स्पष्ट दिख रही थी.
उसको पीछे से देख कर मुझसे काबू नहीं हुआ मैं धीरे से उसके करीब जा कर खड़ा हो गया.
वह जैसे ही पीछे घूमी, एकदम से मुझसे टकरा गई.
हम दोनों चुप थे.
चाय के साथ मेरी अन्तर्वासना भी उबल रही थी.
मैंने बिना कुछ बोले दोनों हाथों से उसके कमर को थामा और आयशा को अपनी ओर खींचा.
वह डाली से टूटे पत्ते की भांति लहरा कर मेरे सीने से लग गई.
उसने मुझे देखा … मैंने उसको देखा.
हम दोनों ही चुप थे.
पर हमारे हाथ एक दूसरे की पीठ पर धीरे धीरे रेंग रहे थे.
मैंने उसके माथे को चूम लिया.
उसने मुस्कुरा कर आंखें मूंद ली.
अब मुझे सहमति मिल चुकी थी.
मैंने उसके लबों को चूमना और हल्के से चूसना चालू किया.
उसकी आंखों में आंसू आने लगे.
मैंने पूछा- क्या हुआ आयशा?
उसने ना में सर हिलाया और मुझे जोर से बांहों में जकड़ लिया.
मैंने गैस बंद की और आयशा को गोद में उठा कर अपने बेड पर ले आया.
मैं उसके होंठों और जीभ को चूस चूस कर पीने लगा.
वह भी गर्म हो चुकी थी और मेरा पूरा साथ देने लगी.
तभी मैंने उसकी चूची को पकड़ कर दबाया.
उसके मुंह से एक लरजती हुए मादक स्वर निकली- हायाल्ला!
अब मैं और पागल होने लगा.
मैंने उसे उठाया और उसका कमीज उतार दिया.
उसने अंदर घर की बनी बनियान पहनी थी.
था उसके पास ब्रा नहीं थी.
मैंने देर न करते हुए उसकी बनियान भी उतार दी.
हाय … क्या नजारा था!
दो कठोर नंगी चूचियां जिनपर एक सिक्के के साइज का हल्के भूरे रंग का गोल निशान और उस पर छोटे चने के दाने जितना निप्पल!
यह देख कर मैं बेकाबू हो उठा।
उसने अपने दोनों कबूतरों को अपने हाथ से पकड़ कर छुपा लिया.
पर मेरे थोड़ा जोर लगाते ही उसने उन्हें आजाद कर के मेरे सामने खुला छोड़ दिया और दोनों हाथ पीछे को कर के बेड पर पीछे को झुक गई.
ऐसा लगा मानो उसने मुझे खुला निमंत्रण दिया हो इन रसीले आमों के रसपान का!
अब मैंने भला कैसे रुक सकता था.
मैंने बिना देर किया एक चूची को मुट्ठी में भरा और दूसरी के चूचुक को मुंह में भर के जोर जोर से पीना और दबाना चालू कर दिया।
आयशा बेकाबू सी मचलने लगी और ‘हायल्ला अहाल्ला’ करती हुई मेरे सर के बालों से खेलने लगी.
लगभग 5 मिनट बारी बारी दोनों चूचियों को पीने और दबाने से उसके शरीर को झटका लगा और वह शांत हो गई.
इसका मतलब था कि आयशा की जवानी का रस उसकी बुर से बह चुका था.
मैंने आयशा को बांहों में भरा और बेड पर लेट गया और उसे चूमने लगा.
तब मैंने अपना निक्कर उतार दिया.
मैं पूरा नंगा था और मेरा काला लंड पूरे ताव में था.
मैंने आयशा का हाथ पकड़ा और अपने लंड पर रख दिया.
उसने मुझे देखा और धीरे से मुस्कुरा कर मेरे लंड को हल्के से पकड़ लिया और धीरे धीरे सहलाते हुए मुठ मारने लगी.
मैंने आयशा की सलवार का नाड़ा खोल दिया, एक झटके में घुटनों तक उतार दिया.
उसने अंदर पैंटी नहीं पहनी थी.
घनी झांटें थी उसकी बुर पर!
मैं बुर चाटना चाहता था पर झांट देख कर मेरा मन नहीं हुआ.
इसलिए मैं बस उसे सहलाने लगा.
मेरा हाथ बुर पर लगने के साथ ही आयशा ने मेरे लंड को इतने जोर से पकड़ा जैसे वह इसे तोड़ ही डालेगी.
मैं उठा और उसकी दोनों टांगों के बीच में आकर बैठ गया. अब बुर सेक्स की बारी थी.
अब तक हम दोनों ने एक शब्द बात नहीं की थी.
जो हुआ था सब मौन सहमति में ही था।
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पर जैसे ही मैं उसके टांगों के बीच आकर बैठा, वह बोली- नहीं, यह मत कीजिए. मेरे अब्बा मुझे मार देंगे. मेरे निकाह की बात चल रही है फूफी (बुआ) के लड़के से!
मैं बोला- ठीक है, तुम नहीं कहोगी तो अंदर नहीं डालेंगे. पर ऊपर ऊपर से तो करने दो!
तब उसने हां में सर हिलाया.
मैंने अपनी उंगली में थूक लगाई और बुर को फैला कर उसपर ढेर सारा थूक लगाया फिर उंगली को बुर की फांकों में फंसा कर ऊपर नीचे करके घिसने लगा.
उसकी आंखें बंद थी, मुट्ठी भींची हुई थी.
वह अपने होंठों को दांत में दबाए शरीर को तान कर लेटी हुई थी.
और मैं अपनी दो उंगलियों से उसकी प्यारी कुंवारी बुर को मसल रहा था.
2-3 मिनट बाद ही उसकी बुर ने पानी छोड़ना शुरू कर दिया.
वह हांफने लगी और कमर उठाने लगी.
मैंने मौके का फायदा उठाया और एक उंगली बुर में उतार दी.
“आह हह आः उन्ह्ह् उफ्फ” न जाने ऐसी कितनी ही उत्तेजक आवाज एक साथ उसके मुंह से निकली.
मैं चुपचाप उंगली से उसकी बुर को चोदने लगा.
कुछ ही देर में वह बोलने लगी- और करो, फाड़ दो, पूरा डालो! चोद दो इस नामुराद को!
मैंने देखा कि लोहा गर्म है, अब अगर बुर मारनी है तो कुछ करना ही होगा.
यह सोच कर मैंने एक बार पूरी उंगली बुर में घुसाई और फिर बाहर निकाल लिया.
उसने मुझे गुस्से से देखा.
मैंने बिना कुछ बोले उसके होंठों को अपने होंठों में भर कर चूसना शुरू किया और उसके ऊपर लेट गया.
अब मेरा लंड उसकी बुर के ठीक ऊपर था.
आयशा मेरे लंड की गर्मी अपनी बुर पर महसूस करने लगी थी.
वह मुझे कस कर बांहों में जकड़े थी और नीचे से कमर उठा उठा कर मेरे लंड को बुर में रगड़ने की कोशिश करने लगी.
मैं फिर उठा और अपने लंड को उसके बुर पर चुभाते हुए मलने लगा.
मेरे ऐसा करने से वह और पागल हो गई और उसने खुद मेरा लंड पकड़ लिया और तेजी से बुर में रगड़ने लगी और बोलने लगी- भाई, डाल दो इसे … अब जो होगा देखा जायेगा! मुझसे रहा नहीं जा रहा। अब डालो ना भाई!
मैं चुप बैठा रहा.
तो वह बोली- डाल ना मादरचोद भड़वे … तब से आग लगा रहा था. जब गर्म हो गई तो भाव खा रहा है रण्डी की औलाद? चोद मुझे वरना तेरा खून कर दूंगी!
मैं मन ही मन हंस रहा था।
उसे और गुस्सा आया उसने मुझे नीचे पटका और खुद मेरे ऊपर आकर बैठ गई और बुर में लंड सेट कर के रगड़ने लगी।
उसकी बुर से लगातार पानी निकल रहा था जिससे बुर अंदर तक गीली हो गई थी.
मैंने हल्के से कमर उठाई तो लंड का सुपारा बुर के मुंह पर जा लगा।
उसने मेरी आंखों में देखा और ऊपर से चूत को लंड पर दबा कर बैठने लगी.
मुझे ऐसा लग रहा था जैसे किसी कसी हुई जगह में लंड को जबरन घुसाया जा रहा है.
मेरा लंड छिलने लगा था, मुझे दर्द सा हो रहा था.
पर मेरा दर्द तो कुछ भी नहीं था … जो दर्द आयशा मेरे लंड को चूत में लेने के लिए सह रही थी.
उसकी आंखों में आंसू और चूत में खून निकल आया था.
उसकी हिम्मत जवाब दे रही थी.
मुझे लगा अब अगर वह डर गई तो ये मौका फिर नहीं मिलेगा.
मैंने उसको अपने ऊपर लिटाया और करवट लेकर चूत में आधा लंड डाले हुए घूम गया.
अब मैं ऊपर था वह नीचे!
मैंने आयशा के होंठों को हाथ से दबाया और एक करारा धक्का लगाया.
जिससे मेरा लंड उसकी चूत को चीरता हुआ अंदर उसके बच्चेदानी से जा टकराया.
बुर सेक्स में उसे बहुत दर्द हुआ, आयशा हाथ पांव पटकने लगी, बेड पर उसकी चूत का खून टपक रहा था.
और वह बेहोश हो गई.
मैं डर गया.
पर मैंने देखा तो वह नीम होश में थी.
मैंने अपना काला लंड आहिस्ते से चूत से बाहर खींचा.
मेरा लंड बंदी की रसीली चूत की मलाई और खून से सना हुआ था.
मैंने थोड़ा और थूक उसकी चूत में मल दिया और एक जोड़दार धक्का दिया.
जिससे मेरा लंड आयशा की चूत को पूरी तरह से चीरता हुआ पूरा अंदर घुस गया.
मैं आयशा के चेहरे को चाट चाट कर गीला करता और साथ ही करारे जोरदार लंड के धक्के उसकी चूत में मारने लगा.
अब तक आयशा को होश आने लगा था।
वह रोने लगी- मुझे नहीं करना … मैं मर जाऊंगी. निकाल लो इसे … मुझे घर जाने दो.
मैं चुपचाप उसकी चूत में लंड पेले हुए उसकी चूचियों को पीते हुए लेटा रहा.
लगभग 5 मिनट में उसे थोड़ी राहत हुई और चूत में लंड होने का अहसास हुआ.
तो अब आयशा धीरे धीरे अपनी कमर हिलाने लगी थी.
मुझे सिग्नल मिल गया कि अब वह नॉर्मल हो रही है.
मैं भी धीरे धीरे चोदने लगा इस प्यारी शहजादी को!
थोड़े देर में आयशा पूरी गर्म हो कर मजे लेने लगी और गालियों के लिए माफी मांगने लगी।
मैं बोला- प्यार में गाली प्यार को बढ़ाती है और मजा भी देती है. बिना गाली के वह मजा कहां! लेकिन तुम मुझे भाई बोलना बंद कर दो अब! मैं अब तुम्हारा कोई भाई नहीं बल्कि जान हूं.
यह बोल कर मैंने लंड बाहर खींचा और एक झटके में पूरा लंड चूत में पेलते हुए बोला- समझी मेरी कुतिया राण्ड!
वह मुस्कुरा दी बस!
फिर वह बोली- हां मेरे चोदू जान!
अब तो मैंने धकापेल चुदाई शुरू कर दी.
उसकी एक टांग अपने कंधे पर रख कर चूची को मुट्ठी में भर के दे दनादन उसकी चूत का थोबड़ा बिगाड़ने लगा.
मेरे हर शॉट आप वह ‘आह आह याल्ला … और जोर से चोद’ बोलने लगी.
मैं भी उसकी चूत का भर्ता बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहता था.
इसलिए उसकी अम्मी से लेकर उसकी बहनों तक को भद्दी भद्दी गालियों से नवाजते हुए उसकी प्यारी चूत को चोदने लगा.
इस बीच वह एक बार भलभला कर झड़ गई थी.
मैंने उसको अपने ऊपर बिठाया और नीचे से उसकी चूत में लंड पेलने लगा.
इस चुदाई को वह देर तक नहीं झेल पाई और 2 मिनट में ही मेरे लंड को दुबारा अपने रस से नहला दिया.
अब मेरा भी माल निकलने को था इसलिए मैंने उसे कुतिया बनाया और पीछे से उसकी चूत में लंड घुसा दिया.
गांड पर थप्पड़ मारते हुए मैं तेज धक्के लगाने लगा.
2-3 मिनट बाद ही मेरा माल निकल को था.
मैंने उसकी चूत को लंड से आजाद किया और उसे सीधा लिटाया और उसके सीने पर चढ़ कर बैठ गया और उसके मुंह में लंड डालने लगा.
वह मना करने लगी.
मैंने उसे अपनी कसम दी कि अगर वह मुझसे प्यार करती है तो मेरे लंड को भी प्यार करेगी, उसे अपने मुंह में भर कर चूसेगी.
उसने थोड़ा अजीब सा मुंह तो बनाया पर उसने मुंह खोल दिया.
फिर मैंने अपना लंड उसकी गले तक उतार दिया और उसका मुंह चोदने लगा.
10 15 धक्के में ही मेरे लंड का लावा फूट पड़ा.
मेरे लंड के पानी से उसका मुंह भर गया.
मैंने उसके मुंह में तब तक लंड ठेले रखा जब तक वह सारा माल पी नहीं गई.
इसके बाद वह उठी.
तो उससे चला नहीं जा रहा था.
मैंने उसे सहारा दे कर उठाया और बाथरूम में ले गया.
साथ ही मैं बेड से चादर भी ले आया क्योंकि चादर हम दोनों की घमासान मल्ल युद्ध की गवाही दे रहा था इसलिए वाशिंग मशीन में डालना जरूरी था।
खैर, वह बाथरूम में फ्रेश हुई और अपने गीले कपड़े फिर से पहनने लगी.
मैंने उसे रोका और तब तक मैं चाय बना लाया.
वह नंगी बैठी मुस्कुरा कर चाय पीने लगी.
फिर कुछ देर में वह उठ कर कपडे पहनने जाने लगी तो मैंने उसे गले लगाया और एक जोरदार चुम्बन किया.
मैंने उसे 500 का एक नोट दिया और बोला- अच्छी सी ब्रा पैंटी ले लेना!
वह पैसे लेने से मना करने लगी.
मैंने बोला- प्यार का तोहफा मना नहीं करते!
तब उसने लिया वह पैसा!
इस तरह मेरी और आयशा की आज की कहानी समाप्त हुई।